हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों के नतीजों के लिए मतगणना हो रही है और अभी तक के रुझानों के मुताबिक, कांग्रेस और बीजेपी में कांटे की टक्कर चल रही है. मतगणना शुरू होने के बाद से अबतक कभी बीजपी तो कभी कांग्रेस आगे होती रही. ऐसे में जननायक जनता पार्टी यानि जेजेपी के किंगमेकर के तौर पर उभरने की संभावना बन रही है. पूर्व सांसद और ताऊ कहे जाने वाले देवीलाल के परपोते दुष्यंत चौटाला की पार्टी JJP ने बीजेपी और कांग्रेस जैसे बड़े दलों को दांतों तले उंगलियां चबाने के लिए मजबूर कर दिया. बतादें कि मतगणना शुरू होने से पहले दुष्यंत ने दावा किया था कि हरियाणा में न बीजेपी और न ही कांग्रेस 40 सीटें भी नहीं ला पाएगी. आइए अब बात करते है, दुष्यंत की JJP की.
दुष्यंत ने बनाई 2018 में जेजेपी
जननायक पार्टी का गठन हुए अभी एक साल भी नहीं हुआ है, लेकिन इसको कमतर भी नहीं आंका जा सकता. दोनों बड़ी पार्टियों को JJP ने सकते में डाल दिया. 9 दिसंबर 2018 को बनी JJP ने एक साल के अंदर ही अपनी सियासी जमीन खासी मजबूत कर ली.
ताऊ देवी लाल का परिवार दो धड़ों में बंटा
हरियाणा की सियासत में ताऊ चौधरी देवीलाल की जबरदस्त पकड़ थी. ताऊ देवीलाल जमीन से जुड़े नेता थे. वहीं देवीलाल की पार्टी ने 1987 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में 90 में से 85 सीटें जीतकर राजनीति में भूकंप ला दिया था. उनकी राजनीतिक विरासत को उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला ने संभाला और हरियाणा प्रदेश के सीएम बने, लेकिन 32 साल के बाद उनकी विरासत संभाल रहा चौटाला परिवार दो धड़ों में बंट गया है. इंडियन नेशनल लोक दल(इनेलो) में फूट फड़ गई. फिर उसके बाद इनेलो की कमान जहां ओपी चौटाला और उनके छोटे बेटे अभय चौटाला के हाथों में है, तो दुष्यंत चौटाला ने अपनी अलग पार्टी JJP बना ली. JJP 10 महीने में तीसरा चुनाव लड़ रही है, पहले जींद उपचुनाव लड़ा, उसके बाद लोकसभा चुनाव और अब विधानसभा चुनाव में पूरी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.
राजनीति के पंडितों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, जेजेपी, कांग्रेस के साथ जा सकती है, अभय चौटाला, बीजेपी के नजदीकी बताए जाते हैं. ऐसा अकाली दल के सुप्रीमो प्रकाश सिंह बादल से उनकी नजदीकी की वजह से है. दुष्यंत चौटाला और अभय में इन दिनों 36 का आंकड़ा है और ऐसे में दुष्यंत चौटाला कभी नही चाहेंगे कि वो बीजेपी के खेमे में जाएं.
बीजेपी के खिलाफ जाटों की नाराजगी को जेजेपी ने कैश किया था. चुनावी रैलियों में जेजेपी ने उनसे समर्थन मांगा और जानकारों के अनुसार, जाटों के एक बड़े वोट बैंक का उनको साथ मिला भी. ऐसे में पार्टी, कांग्रेस के साथ जा सकती है.