सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहि ते तरहि भव सिंधु बिना जलजनान।
भावार्थ- श्री रघुनाथ जी का गुणगान संपूर्ण सुंदर मंगलों का देने वाला है. जो इसे आदर सहित सुनेंगे वे किसी अन्य साधन के भवसागर को तर जाएंगे.
रामचरितमानस की रचना तुलसीदास ने महार्षि वाल्मिकी के रामायण को आधार बनाकर लिखा. सुंदरकांड रामचरितमानस का पंचम सोपान है. सुंदरकांड में पवनसुत हनुमान के यश का गुणगान किया गया है, तो इस सोपान के नायक हनुमान जी है. जब भी कोई मनुष्य सुंदरकांड को पढ़ता या सुनता है तो उसका हृदय खुशी से नाच उठता है. आपने देखा होगा कि घर के आस-पास भी सुंदरकांड का पाठ होता रहता है. हम सब जानते है कि सुंदरकांड में प्रभु श्रीराम के परम प्रिय लाडले भक्त हनुमान जी की लीलाओं का वर्णन किया गया है. उनके द्वारा की गई अद्भुत और मन को हरने वाली लीलाओं के कारण ही गोस्वामी तुलसीदान ने इसे सुंदरकांड का नाम दिया. लेकिन कभी आपने सोचा कि सुंदरकांड का नाम सुंदरकांड ही क्यों रखा गया ?
दरअसल, रावण जब सीताजी को उठा ले गया था. तो हनुमानजी सीता माता की खोज करने लंका गए थे. लंका त्रिकुटांचल पर्वत पर बसी हुई थी. त्रिकुटांचल पर्वत यानी यहां 3 पर्वत थे. पहला सुबैल पर्वत, यहां के मैदान में युद्ध हुआ था. दूसरा नील पर्वत, जहां राक्षसों के महल बसे हुए थे. तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत, जहां अशोक वाटिका निर्मित थी. इसी वाटिका में हनुमानजी और सीताजी की भेंट हुई थी. सुंदर पर्वत पर ही सबसे प्रमुख घटना घटित होने के कारण इसका नाम सुंदरकांड रखा गया.
श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है. सारे रामचरितमानस में श्रीराम के गुणों और पुरूषार्थ को बताया गया है लेकिन ये कांड एक ऐसा है, जिसमें राम भक्त हनुमान के विजय का वर्णन किया गया है.
सुंदरकांड का पाठ सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है. किसी भी प्रकार की परेशानी, संकट, सुंदरकांड के पाठ से तुरंत दूर हो जाते है. इसलिए पूरी रामायण में सुंदरकांड को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि ये व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता है. इसी वजह से सुंदरकांड का पाठ विशेष रूप से किया जाता है.