भाई दूज का त्योहार कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तारीख को मनाया जाता है. इस बार मंगलवार के दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाएगा. बतादें कि इसे ‘भ्रातृ द्वितीया और यम द्वितीया’ के नाम से भी जाना जाता है. भाई दूज का त्योहार दीपावली के बाद मनाया जाता है, इस त्योहार में बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर उसके भविष्य और लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं.
भाई दूज शुभ मुहूर्त
द्वितीया तिथि शुरू- सुबह 06 बजकर 13 मिनट से (29 अक्टूबर)
द्वितीया तिथि खत्म – सुबह 03 बजकर 48 मिनट तक (30 अक्टूबर)
भाई दूज अपराह्न समय- दोपहर 01 बजकर 11 मिनट से दोपहर 03 बजकर 26 मिनट तक
कुल अवधि- 02 घंटे 14 मिनट
ऐसे करें पूजा
इस दिन सभी भाई-बहनें स्नान करके पूजा की थाली तैयार करें. इस थाली में रोली, चावल, मिठाई, नारियल, घी का दीया, सिर ढकने के लिए रूमाल आदि रखें. साथ ही घर के आंगन में आटे या चावल से एक चौकोर आकृति बनाएं और गोबर से बिल्कुल छोटे-छोटे उपले बनाकर उसके चारों कोनों पर रखें और पास ही में पूजा की थाली भी रख लें.
अब उस आकृति के पास भाई को आसन पर बिठा दें और भाई से कहें कि वो अपने सिर को रूमाल से ढंक ले. अब दीपक जलाएं और भाई दूज की कथा सुनें. फिर भाई के माथे पर रोली, चावल का टीका लगाएं और उसे मिठाई खिलाएं. साथ ही भाई को नारियल दें, इसके बाद भाई अपनी बहन को कुछ उपहार स्वरूप जरूर दें. इससे भाई-बहन के बीच प्यार और सम्मान बढ़ता है.
भाई- बहनों के घर खाता है खाना
भाई दूज के दिन अपनी बहन के घर में भोजन करने की परंपरा है. इसका वर्णन ऋगवेद में मिलता है कि यमुना ने अपने भाई यम को इस दिन खाने पर बुलाया था, इसीलिए इस दिन को यम द्वितिया के नाम से जाना जाता है. पद्मपुराण के मुताबिक जो व्यक्ति इस दिन अपनी बहन के घर खाना खाता है, वो साल भर किसी झगड़े में नहीं पड़ता और उसे दुश्मनों का भय भी नहीं होता है, यानी हर तरह के संकट से भाई को छुटकारा मिलता है और उसका कल्याण होता है. अगर आपकी अपनी सगी बहन न हो तो चाचा, बुआ या मौसी की बेटी को अपनी बहन मानकर उसके साथ भइया दूज मनाना चाहिए और अगर वो विवाहित है तो उसके घर जाकर भोजन करना चाहिए.