कितना कुछ बदल गया है, अब वो बात नहीं रही जो हमारे वक्त में हुआ करती थी. अक्सर जब आप अकेले में होते होंगे तो आपके दिमाग में ये बात जरूर आती होगी. क्यों आती होगी, क्योंकि आज 2-3 साल का बच्चा पूरा फोन चला देता है. हमारे टाइम में फोन नया आया ही था तो फोन उठाने के 22 रुपए कट जाते थे. उस वक्त घर वाले हमें चप्पल दिखाकर फोन से दूर रखते थे. तो आज हम बात करेंगे 1990 से लेकर 2019 में क्या कुछ बदला. ये छोटा सा उदाहरण ही था, आगे ऐसे बहुत उदाहरण मिलने वाले है. क्योंकि बचपन वो मुठ्ठी से फिसलती हुई रेत है, चाहे मुठ्ठी कितनी ही कस लो रेत फिसलकर निकल ही जाती है. अगर आप 90 के दशक के प्रोडक्ट हैं, तो आज की दुनिया की कई चीजें देखकर आपके दिल से निकलता होगा, अबे क्या यार, इससे अच्छा तो हमारा बचपन था.
चाहे भरी धूप में खेलना हो, फिर पसीनों में पानी पी लेना हो, या फिर 1 रुपए में 4 टॉफी खाना हो. लेकिन वक्त का पहिया ऐसा घुमा लोगों के शौंक अदातें बदल सी गई. टीवी पर एंटिना की जगह वेब सीरीज और हजारों चैनल्स ने ले ली. कभी-2 ऐसा लगता है, काश वो वक्त वापस आजाए. ये दिल तो पगला सा है बावरा है. मानने को राजी ही नहीं कि अब हम बड़े हो गए हैं.
चुइंगम
चुइंगम क्या होती है, इसका तो उस वक्त बच्चों को पता ही नहीं था क्योंकि वे इसे बबलगम कहते थे. सबसे बड़ी बात उस वक्त बबलगम खाकर हम रेपर को जोड़ते थे. बूमर को जोड़कर बताए गए पते पर भेजना होता था. जिसके बाद गिफ्ट मिलता था और उसमें टैटू निकलता था, जिसको कई बच्चे अपने चेहरे पर चिपका लिया करते थे. लेकिन अब बूमर में टैटू भी नहीं आता.
शक्तिमान
अब बच्चे नेटफ्लिक्स देखते हैं, पबजी गेम खेलते है. पहले शक्तिमान और उसकी छोटी और मोटी बातें बचपन में शायद कोई बच्चा रहा होगा, जिसने शक्तिमान नहीं देखा होगा. कुछ बच्चे तो उसकी ड्रेस पहन कर भी घूमते थे. उसमें मैं भी एक था.
कुल्फी वाला
जोमैटो एप से कुछ भी ऑडर करो घर देकर जाता है. घर पर बैठकर या मॉल में जाकर आज के बच्चे खाते है. हमारे वक्त में कुल्फी वाले की गली में घंटी बजाना सारे बच्चों का भाग कर उसके पास जाना और कहना ऐ कुल्फी वाले भईया पहले मुझे दे दो, ट्यूश्न के लिए लेट हो रहा हूं. उसका भी एक अलग ही मजा था.
लेटर
आज व्हाट्सप्प, फेसबुक का जमाना है. लोग हमें मैसेज करते है. लेकिन पहले लेटर दिया करते थे और अपने दिल की बात लेटर में कहते थे.
ऑडियो केसैट
आज आप अपने फोन में मन पसंदीदा गाना सुन सकते हैं. लेकिन 90 दशक में गानों का शौक हमसे क्या नहीं करवाता था. उस वक्त टेप रिकॉर्डर पर गाने सुनने होते थे, जिनमें केसैट चलती थी. कैसेट में आधे गाने A की तरफ और आधे गाने B की तरफ हुआ करते थे. केसैट में पतली और बहुल लंबी रील हुआ करती थी जो केसैट के अंदर फंस जाती थी. लेकिन उसके अंदर पैन लेकर इस रील को अंदर ठीक करना बस उस वक्त के बच्चों को पता था.
कार्यक्रम
आज हर घर में टीवी है, लेकिन पहले ऐसा नहीं था. कुछ ही घरों में टीवी होता था. पड़ोसियों के घर पर सारे बड़े-बुजुर्गों और बच्चों का इकट्ठा हो जाना और उसके बाद सबका साथ बैठकर रामायण महाभारत देखने का भी अलग मजा था. उस वक्त रामायण-महाभारत इतना लोकप्रिय धारावाहिक थे कि सड़कें खाली हो जाती थीं. ऐसे में लाइट चली जाए तो सारे घरवाले इतने गुस्से में आ जाते थे चारों तरफ से बिजली विभाग के लिए गालियों की बौछार होने लगती थी. बच्चे जमीन पर लेटकर धारावाहिक देख रहे होते थे, गली में शोर मचाने लग जाते थे.
लैंडलाइन फोन लॉक
आज बच्चों के पास अपना फोन हैं. लेकिन 90 के दशक में ऐसा नहीं होता था. पैरेंट्स टेलीफोन में ताला लगा देते थे. फिर बच्चों की होशियारी और मम्मी-पापा के लगाए ताले में होता था मुकाबला. मजा तब आता था जब बच्चे ताले से ये जंग जीत जाते थे. लेकिन मम्मी-पापा समझते थे फोन में ताला लगा है.
त्यौहार
ऐसा लगता है कि आज के बच्चों में त्यौहार से कोई लेना देना ही नहीं उनकी लाइफ फोन-टीवी के आस-पास सिमट गई है. 90 दशक में बच्चे त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मनाते थे. चाहे वो दशहरे की पर्ची कटवाकर रावण बनाना हो, दिवाली के बम बचाकर अगले दिन फोड़ना हो, होली पर खुद के ही चेहरे पर रंग लगा लेना हो. 15 अगस्त पर पतंग लूटना हो. सभी त्यौहारों को खुशी-2 मनात थे. खास बात ये होती थी कि घर वालों से पीटते भी थे. पीटे बिना कोई त्यौहार पूरा नहीं माना जाता था.
इन सब के बीच बचपन बीत गया, पता ही नहीं चला कि बड़े कब हो गए. जिंदगी में बस यादें रह गई, कुछ स्कूल से जुड़ी कुछ बचपन से जुड़ी.