अयोध्या के राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में 9 नवंबर यानी आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से ये फैसला पढ़ा. फैसला सुनाते हुए निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया,जिसमें रामलला का हक माना गया है. वहीं मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ अलग जमीन देने का आदेश दिया गया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है.
कोर्ट ने भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण (ASI)की रिपोर्ट के आधार पर ये कहा कि मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी. साथ ही कोर्ट ने ASI की रिपोर्ट की बुनियाद पर अपने फैसले में कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की भी कोई जानकारी नहीं है.
SC ने अयोध्या जमीन विवाद मामले में इस बात को माना की ढांचा गिराना कानून व्यवस्था का उल्लंघन था. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आस्था और विश्वास के आधार पर मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता.
आइए आपको बताते हैं, फैसले से जुड़ी खास बातें
- अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, मंदिर का रास्ता साफ
- जमीन पर रामलला का हक माना गया
- सुन्नी वक्फ को पांच एकड़ जमीन मिलेगी
- निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज
- पूजा-पाठ का अधिकार पक्षकार गोपाल विशारद को मिला
- 3 महीने में करेगी केंद्र सरकार मंदिर के ट्रस्ट का गठन
- नया ट्रस्ट मंदिर के निर्माण की रूपरेखा तैयार करेगा
- मुस्लिम पक्ष को जमीन देने की जिम्मेदारी यूपी सरकार की
- आस्था और विश्वास पर नहीं कानून के आधार पर फैसला
मुसलमान नहीं कर पाए एकाधिकार सिद्ध
CJI रंजन गोगोई ने फैसला पढ़ते वक्त कहा कि दस्तावेजों के आधार पर पता चलता है कि 1885 से पहले हिंदू अंदर पूजा करते थे. बाहरी अहाता में रामचबूतरा सीता रसोई में पूजा होती थी. सन् 1934 में दंगे हुए, उसके बाद से मुसलमानों का एक्सक्लूसिव अधिकार आतंरिक अहाते में नहीं रहा. मुसलमान उसके बाद से अपना एकाधिकार सिद्ध नहीं कर पाए. हिंदू बाहर पूजा करते रहे. 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद का ढांचा ढहा दिया गया. रेलिंग 1886 में लगाई गई.
इन 5 जजों ने सुनाया फैसला
इस अहम फैसले को SC की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाया. जिसमें CJI रंजन गोगोई. जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया.